राधा की विरह-वेदना (पवनदूती) ( Radha Ki Virah Vedna ) : अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ( BA – 3rd Semester )

‘पवन दूती’ शीर्षक काव्य अयोध्या सिंह उपाध्याय द्वारा रचित खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य ‘प्रियप्रवास’ का अवतरण है | इस कविता का प्रमुख विषय राधा के विरह का चित्रण करना है |

श्री कृष्ण मथुरा के राजा कंस के आमंत्रण पर मथुरा चले गए परंतु पुन: लौटकर नहीं आए | इधर राधा श्री कृष्ण के आने की प्रतीक्षा में विरह-विदग्ध हो गई | विरह-वेदना उसे पीड़ित करने लगी | विरह-वेदना से व्यथित राधा तत्पश्चात पवन को संबोधित करके उसे एक दूत के रूप में श्री कृष्ण के पास जाने का आग्रह करती है और उस से निवेदन करते हैं कि वह उसकी व्यथा को श्री कृष्ण के सम्मुख जाकर इस प्रकार से व्यक्त करे कि श्रीकृष्ण बाध्य होकर उनके पास चले जाएं |

संभवत है कालिदास द्वारा रचित ‘मेघदूत’ के आधार पर ही अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी ने पवन के माध्यम से राधा का संदेश श्री कृष्ण तक पहुंचाने की कल्पना की है | जिस प्रकार कालिदास द्वारा रचित मेघदूत में यक्ष का संदेश मेघ लेकर जाता है, ठीक उसी प्रकार राधा भी अपना संदेश श्री कृष्ण के पास पवन के माध्यम से भेजती है |

प्रस्तुत काव्य में राधा का विरह-वर्णन परंपरागत विरह-वर्णन से भिन्न है | राधा केवल अपने विरह में आहें ही नहीं भरती बल्कि अपने दुख से अधिक दूसरों के दुख की चिंता करती है |

जाते-जाते अगर पथ में, क्लांत कोई दिखावे |
तो तू जाकर सन्निकट, उसकी क्लान्तियों को मिटाना |
धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना |
सद ग्रंथों सेेेे श्रमित जन को, हर्षितों सा बनाना |

राधा भगवान कृष्ण के विरह में दुखी आवश्यक है किंतु है सामान्य नायिकाओं की तरह बेहाल होकर प्रकृति के पदार्थों को नहीं कोसती अपितु सभी दुखियों के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है | वह पवन को अपनी दूती बनाकर उसे श्री कृष्ण के पास भेजती है और उससे निवेदन करते हैं कि वह उसकी विरह वेदना के विषय में श्रीकृष्ण को इस प्रकार से अवगत करा दें कि वह मेरे पास आने के लिए बाध्य हो जाएं | राधा के द्वारा संदेशवाहक के माध्यम से इस प्रकार का संदेश देना कोई नई बात नहीं है लेकिन मार्ग में आने वाले सभी जड़-चेतन पदार्थों के लिए मंगलकामना करना इस विषय वस्तु को नवीनता प्रदान करता है |

उदाहरण देखिए : –

कोई क्लान्ता कृषक ललना,  खेत में जो दिखावे |
धीरे-धीरे परस उसको, क्लांति सर्वांग खोना |
जाता कोई जलद यदि हो, व्योम में तो उसे ला |
छाया सीरी सुखद करना, शीश तप्तांगना के |

प्रस्तुत काव्य में राधा की विरह वेदना के साथ-साथ प्रकृति के मनोरम दृश्यों का वर्णन भी किया गया है | सभी जड़ चेतन-पदार्थों के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई तथा साथ ही श्री कृष्ण के सलोने रूप का सुंदर एवं सजीव चित्रण भी किया गया | इस प्रकार प्रस्तुत कविता का वर्ण्य- विषय कई पहलुओं को समेटे हुए है |

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